लेखनी प्रतियोगिता -06-Dec-2021 कहां खो गई अपनी नैतिक कहानियां
*कहां खो गई अपनी नैतिक कहानी*
कहां खो गई अपनी नैतिक कहानियां ,
जो सुनते थे हम बुजुर्गों की जबानीयां |
उनके वह किस्से बड़े बहुत बड़े,
होते थे शिक्षा और अनुभव से भरे |
वह अमर कथाएं वीर जवानों की,
वो दास्तानें राजा और रानी की |
जानवरों व जादुई परियों की कहानी ,
एकता में अनेकता थी एक वाणी |
धर्म जहां अलग ना होते थे ,
बच्चे दादा-दादी संग सोते थे |
जुबान पर उनके रहती अनुशासन की बातें ,
अतिथि देवो भव: में मेहमानों से मुलाकाते |
साधु संतों को बुलाकर कराना भोजन ,
उनका और ना कोई था प्रयोजन |
परिवार उस समय संयुक्त होते थे,
चाचा ,ताऊ ,मामा सब एक होते थे |
आंख कोई अगर उठाए एक जन पर ,
लाठियां चल जाती थी उस तर्ज पर |
बच्चे सबके होते थे एक समान,
कोई नहीं रहता था तब बेनाम |
आज परिवार ही नहीं बंट गया,
बच्चों से बचपन ही छिन गया |
वक्त आज नहीं रहा किसी के पास ,
सबको हैं सिर्फ गूगल बाबा से आस |
नवाचारों का जब से हुआ है आगमन,
लोगों से जैसे रूठ गया हैं आचमन |
सभी लोग मोबाइल के गुलाम हुए,
जो हर तरह के ऐप से हैं भरे हुए |
नैतिक शिक्षा अब यहाँ देगा कौन?
हर कोई फोन में लगकर हो गया मौन |
बातें करने की फुर्सत किसी के पास नहीं ,
सबको लगती है परायों की बातें ही सही |
कहानियां सुनाने वाले जैसे सुप्त हो गए ,
प्यार शिक्षा भरे किस्से भी लुप्त हो गए ||
प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
रतन कुमार
10-Dec-2021 02:43 AM
Sty kaha
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Shikha Arora
21-Dec-2021 11:32 AM
Thank u ji 🙏
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Ravi Goyal
06-Dec-2021 11:49 PM
बहुत सुंदर रचना 👌👌
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Shikha Arora
21-Dec-2021 11:32 AM
Thank u ji 🙏
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Shrishti pandey
06-Dec-2021 11:26 PM
Nice
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Shikha Arora
21-Dec-2021 11:31 AM
Thank u ji🙏
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Shikha Arora
21-Dec-2021 11:32 AM
Thank u ji🙏
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